यादों का क्या? 

यादों का क्या? 

वो आती जाती है  

भूल न पाती,

गाँव, गली, मोहल्ले 

वो घर के आँगन!

हंसी-ठहाके 

कदमों तले आसमां था   

भूल न पाती 

नीम के पेड़

चूँ चूँ करते चिड़ियों के बच्चे 

हथेलियों पर दाना चुगते, 

खेल था,  

बारिश की बूंदों में 

झूलते, झगड़ते बचपन   

मिट्टी के खिलौने 

चूल्हा, चकिया 

वो पड़कुलिया 

भूल न पाती 

शहर छूटा, देश भी छूटा 

पर याद न छूटी 

मन को मनाती 

पर, आँखें न मानती 

लुड़क आती गालों पे 

भावनाएं पिघल कर 

यादों का क्या? 

वो आती जाती है  

भूल न पाती 

-स्मृति गुप्ता

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